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मुझे कुछ कहना है ...
अलफ़ाज़, कहीं किसी कोने से निकले
और जेहेन तक आते -आते न जाने कहाँ गुम हो गए ..
मुझे अहसास हुआ कि वे निकले ,मेला किये और धुआं गुबार सा उड़ा कर
बादल कि तरह हवा हो गए
न किसी को छुआ ,न उनके होने का अहसास हुआ ...
मुझे कुछ सुनना है ....
अल्फाजों की आहट सी हुई,
मेरे कानों में पड़े ज़रूर...
पर अधर ,सिमटे -सकुचाते से दामन बचाते हुए ,
आये और गुम हो गए .
न किसी को छुआ ,न उनके होने का अहसास हुआ ...
सिर्फ सुनाई भर देते हैं दिल को न छूने वाले अलफ़ाज़
उनकी तीखी -मीठी छुअन ही दिलाती है उनके होने का अहसास .
wah! "na kisiko chua, na unke hone ka ehsaas hua"
ReplyDeletethis is tweet-worthy and i am going to tweet this poem
Thank you Sujata :)
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