क्यूँ उठूँ मैं सुबह जब उठते हो तुम ,
नहीं आती मुझे नींद जब सोये ये दुनिया.
इंतज़ार करने दो मुझे,नयी सुबह की है ये धुन ,
ढलने दो ये सलेटी शामें ज़रा,गहराने दो अँधेरा,
आसमानी तारों को तकती रात पर हक है मेरा .
मत कुचलो ,ना ताडो लोगों ,
तुम्हारी कालीन पर पड़ा धूल का कण ही सही
नाक में दम तो तब भी कर सकता हूँ मैं .
लेकर एक नन्हीं सी आरज़ू ,
क्यूँ जी नहीं सकता मैं यूँ ही कहीं ?
मत तोलो मुझे बार- बार अपनी उम्मीदों के तराजू पर
खरा ना उतरूंगा कभी, हल्का ही नज़र आऊँगा हर बार .
नहीं आती मुझे नींद जब सोये ये दुनिया.
इंतज़ार करने दो मुझे,नयी सुबह की है ये धुन ,
ढलने दो ये सलेटी शामें ज़रा,गहराने दो अँधेरा,
आसमानी तारों को तकती रात पर हक है मेरा .
मत कुचलो ,ना ताडो लोगों ,
तुम्हारी कालीन पर पड़ा धूल का कण ही सही
नाक में दम तो तब भी कर सकता हूँ मैं .
लेकर एक नन्हीं सी आरज़ू ,
क्यूँ जी नहीं सकता मैं यूँ ही कहीं ?
मत तोलो मुझे बार- बार अपनी उम्मीदों के तराजू पर
खरा ना उतरूंगा कभी, हल्का ही नज़र आऊँगा हर बार .