गीली धरती के तर ओंठों की ओर,
झुकी जाती हैं डालें ...
रीझी - रीझी सी सराबोर
courtesy Google images
कसक अनजानी सी जगाई यूँ है ,
के रुत बदली- बदली सी और
ये फिजा इठलाई सी क्यूँ है .
मेघों की रवानगी के बाद ,
सर्द रातों की ठंडक और ,
फिर इंतज़ार एक नर्म - नम आगोश का
गर्मियों की तपिश और सुलगती धूप....
तेरे बाद ही लागे प्यारी
गुलाबी सर्दियों की वो ऊब
इक आनी जानी रुत है और आता जाता जीवन
इक दुःख का ये पल है देखो
पीछे खड़ी ख़ुशी है ...
~०००००००~
झुकी जाती हैं डालें ...
रीझी - रीझी सी सराबोर
courtesy Google images
कसक अनजानी सी जगाई यूँ है ,
के रुत बदली- बदली सी और
ये फिजा इठलाई सी क्यूँ है .
मेघों की रवानगी के बाद ,
सर्द रातों की ठंडक और ,
फिर इंतज़ार एक नर्म - नम आगोश का
गर्मियों की तपिश और सुलगती धूप....
तेरे बाद ही लागे प्यारी
गुलाबी सर्दियों की वो ऊब
इक आनी जानी रुत है और आता जाता जीवन
इक दुःख का ये पल है देखो
पीछे खड़ी ख़ुशी है ...
~०००००००~
Aap hindi main bhi likhte ho :) <3 aaww....bhot achha laga merko padh ke :)
ReplyDeleteI used to love hindi poems and write too...but they all turned so sadistic, I stopped....
I think I have issues with blog feeds too....aapke feeds abhi tak reflect nahi hue...or wait, let me check again...
very soft words.. positive bhi :)
ReplyDeleteChintan, suku, Thank you:)
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteयह जानकर बहुत खुशी ही कि आप हिन्दी में भी लिखती हैं।
हम कवि तो नहीं है।
पर कविता का शौक ज़रूर है।
खुद कविता लिख तो नहीं सकते पर औरों की कविताएं अवश्य पढते हैं।
क्या इससे पहले भी इस ब्लॉग पर हिन्दी में आप लिख चुकी हैं?
चलो ढूँढते हैं। यदि फ़ुरसत हो तो कृपया कडी बता दीजिए।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
धन्यवाद विश्वनाठ्जी ,पढने के लिए.ज्यादा तो नहीं पर कभी कभी लिखती हूँ .
ReplyDeleteआपकी हिंदी शुद्ध है!कविताओं को एक जगह संग्रहित करना चाहती हूँ
पर समझ नहीं आता कैसे करूँ ब्लॉग पर ..लिंक भेजूंगी अवश्य :)