हर शाम का आलम क्या कहिये,
महफ़िल की रंगत क्या कहिये,
गूँगे शायर हैं मौजूदा ,
गजलों का समाँ क्या कहिये ,
महफ़िल रंगीं करने को ,कुछ बेजुबां शायर आते हैं
सदियों से आना जाना है ,कुछ बेकार बेबात की बातें हैं ..
एकाकी,यादें , उदासी ,रंजो-ग़म, बेबसी,बेकारी ,बेकरारी -
यही वे दिलजले हैं, सदियों से ,जो हर शाम, पल- पल जला किये हैं..
यही हैं वे ,जो हर महफ़िल के चिराग हैं ,
औ यही हैं वे, ए दोस्त, जो दिलों की दुनिया को रोशन औ आबाद किये हैं
No comments:
Post a Comment