Saturday, September 17, 2011

महफ़िल के चिराग

हर शाम का आलम क्या कहिये, 
महफ़िल की रंगत क्या कहिये, 
गूँगे शायर  हैं मौजूदा ,
गजलों का समाँ क्या कहिये ,


महफ़िल रंगीं  करने को ,कुछ बेजुबां शायर आते हैं 
सदियों से आना जाना है ,कुछ बेकार बेबात की बातें हैं ..


एकाकी,यादें , उदासी ,रंजो-ग़म, बेबसी,बेकारी ,बेकरारी -
यही वे दिलजले  हैं, सदियों से ,जो हर  शाम, पल- पल जला  किये हैं..
यही हैं वे ,जो हर   महफ़िल के चिराग हैं ,
औ यही हैं वे, ए दोस्त, जो  दिलों की दुनिया को रोशन औ आबाद किये हैं 
      

 

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