Thursday, August 4, 2011

मंजिलें वही हैं ,वहीँ हैं

वो सबक ही नहीं , ज़िन्दगी की तालीम थी जानों 
बेबसी ये कैसी दोस्त ,रास्ता ख़त्म हुआ हो  मानो . 
एक कदम ही तो  पीछे हुए ,कदम थम तो न गए ,
हौले से चलकर छू  ही लेंगे आयाम  नए.

                                                                                   










वे भागते हैं , भागा करें ,
हमें रास्ते रास आते हैं ,
मंजिलें वही हैं ,वहीँ हैं
अब पहुंचे , या तब पहुंचें  

क़दमों को आदत है ,भागें
नज़रें चाहती हैं ..ठहरना 
हसीं नजारों को चख कर, फिर पीना 
क्या हुआ दोस्त गर  तुम पीछे,वे आगे  

देर सबेर ही सही, वहीँ मिलेंगे  जब सभी 
तुमने ढूंढा, या मंजिल ने तुम्हें 
क्या फर्क पड़ता है,
तब.. या.. अभी -अभी .


       

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