गीली धरती के तर ओंठों की ओर,
झुकी जाती हैं डालें ...
रीझी - रीझी सी सराबोर
courtesy Google images
कसक अनजानी सी जगाई यूँ है ,
के रुत बदली- बदली सी और
ये फिजा इठलाई सी क्यूँ है .
मेघों की रवानगी के बाद ,
सर्द रातों की ठंडक और ,
फिर इंतज़ार एक नर्म - नम आगोश का
गर्मियों की तपिश और सुलगती धूप....
तेरे बाद ही लागे प्यारी
गुलाबी सर्दियों की वो ऊब
इक आनी जानी रुत है और आता जाता जीवन
इक दुःख का ये पल है देखो
पीछे खड़ी ख़ुशी है ...
~०००००००~
झुकी जाती हैं डालें ...
रीझी - रीझी सी सराबोर
courtesy Google images
कसक अनजानी सी जगाई यूँ है ,
के रुत बदली- बदली सी और
ये फिजा इठलाई सी क्यूँ है .
मेघों की रवानगी के बाद ,
सर्द रातों की ठंडक और ,
फिर इंतज़ार एक नर्म - नम आगोश का
गर्मियों की तपिश और सुलगती धूप....
तेरे बाद ही लागे प्यारी
गुलाबी सर्दियों की वो ऊब
इक आनी जानी रुत है और आता जाता जीवन
इक दुःख का ये पल है देखो
पीछे खड़ी ख़ुशी है ...
~०००००००~