Saturday, September 17, 2011

आज को जी ले ,इस पल ही

कल ...

हम थे अकेले 

न कोई साथी , न सहारा 
चले जा रहे थे ,अनजान राहों पर ,खामोश मायूस से ..
न कोई  चाहत, न मंजिल, 
बस साँसें थी,ज़िन्दगी थी तो ज़िंदा भी थे ...

आज ...

तुम हो 

साथी भी है , सहारा भी, 
जीवन के सफ़र में  हमसफ़र भी ,
चलते हैं उन्हीं राहों पर ,मंजिलों की आस लिए ..
क्या जानें और क्यों भला, के ये राहें कहाँ ले जायेंगी,
थामे हैं हाथों को तेरे तो सफ़र ही  हसीं है 


कल ...

आस है ..

अनजाना, अनबूझा कल, किसने देखा है?
गर देखा होता , जाना होता, तो कहते...
फिक्र नहीं ए दोस्त, क्यों खोया  कल और कल में ..
साथ भी होगा,साथी भी,तू  भी होगा ..मंजिल भी ..

आज को जी ले ,इस पल ही 





    

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